उत्तराखंड में वन्यजीवों और आम लोगों के बीच में संघर्ष की बातें अब आम हो चुकी हैं। आए दिन खबरें सामने आती हैं जब कोई जानवर गांव में घुस जाए और महिला या बच्चे को अपना निवाला बना दें। इसके साथ ही पिछले कुछ दिनों में यह भी देखने को मिला है जब आक्रोशित ग्रामीणों ने ही जंगली जानवरों को मार दिया, ऐसा ही मामला पौड़ी में सामने आ चुका है। जब एक तेंदुए को गांव के लोगों ने जिंदा जला दिया।
लेकिन मामला वन्यजीवों के लिए तब ज्यादा खतरनाक हो जाता है इनकी संख्या कम होने लगे, यह न सिर्फ प्रकृति के लिए नुकसानदायक हो सकता है बल्कि आने वाली मनुष्य के पीढ़ी के लिए भी एक खतरे का संकेत है।
वहीं देहरादून में उत्तराखंड वन्यजीव बोर्ड की 17वीं बैठक, बैठक में कई सारे निर्णय भी लिए गए जो खास निर्णय लिया गया है वो है कि सरकार वन्यजीवों की सुरक्षा के साथ ही वनाग्नि रोकने के लिए स्थानीय लोगों की मदद लेने जा रही है। इसके लिए गांवस्तर पर प्राइमरी रिस्पॉन्स टीम (पीआरटी) बनाई जाएंगी “वैसे वनाग्नि को रोकने के लिए स्थानीय लोगों की मदद वन विभाग लंबे समय से लेता रहा है लेकिन स्थिति आज भी सामान्य नहीं हो पाई है” लेकिन जो सबसे बड़ी चिंता की बात है वह है कि उत्तराखंड में पिछले 21 सालों में 144 बाघों की मौत हो चुकी है। मुख्यमंत्री ने अफसरों को इसकी गाइडलाइन बनाने के निर्देश दिए। मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डॉ. पराग मधुकर धकाते ने बताया कि राज्य में 15 हजार से ज्यादा गांव हैं। इनमें से बड़ी संख्या में गांवों में वन्यजीवों के कारण फसलों को नुकसान होता है।वर्ष 2001 से 2022 तक राज्य में 144 टाइगर तस्करी तथा अन्य वजहों से मारे गए। इसके अलावा आक्रामक होने पर 23 को ट्रैंकुलाइज किया गया।