उत्तराखंड में अभी गर्मी ठीक से आई भी नहीं है बावजूद इसके पहाड़ों में जंगल जलने लगे हैं। हर साल वन विभाग इसको लेकर बड़ी तैयारियां करता है, और कहता है कि हम इस साल स्थिति को काफी हद तक काबू पाने में सफल रहेंगे। बावजूद इसके वन विभाग की तैयारियां जस की तस रह जाती हैं, और जंगल हर साल कई हेक्टेयर चल जाते हैं। दूसरी एक दशक पहले फायर सीजन आमतौर पर मई-जून में स्टार्ट होता था लेकिन पिछले कुछ सालों में यह सीजन अप्रैल में ही शुरू होने लगा है। Fire season खत्म होने के बाद फॉरेस्ट डिपार्टमेंट 1 लंबी चौड़ी रिपोर्ट रख देता है जिसके बाद वह बताता है कि कहां पर कितना फॉरेस्ट जलकर राख हो गया है। साथ ही कितनी वन संपदा को नुकसान पहुंचा है और क्या जंगल में लगने वाली आग से जंगली जानवर भी मरे हैं ये भी रिपोर्ट में रहता है।उसके बाद हर कोई इस रिपोर्ट को भूल जाता है।वहीं फिर नया फायर सीजन आता है। और वही सब दोबारा शुरू हो जाता है। वहीं अभी अप्रैल का आधा महीना भी खत्म नहीं हुआ है और पहाड़ों में आग लगने शुरू हो गई है।
जंगलों में लगी आग के बारे में जब वहां के आस पड़ोस में रहने वाले ग्रामीणों से बात की जाए तो कई ग्रामीण की बात खुलकर कहते हैं कि, आग या तो स्थानीय लोग ही लगा देते हैं या फिर फॉरेस्ट डिपार्टमेंट से जुड़े हुए कुछ कर्मचारी। आग अलग-अलग वजहों से स्थानीय लोग और फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के कर्मचारियों द्वारा लगाई जाती है।लेकिन इतना जरूर है कि इस आग से लाखों की वन संपदा जंगली जानवर जलकर राख हो जाते हैं। और वन विभाग की तैयारियां भी जस की तस रह जाती है।।